प्राणोँ की महावर
प्राणोँ की महावर अर्चना की सुरभि प्राणों की महावर बन गयी जब , देह की आराधना का अर्थ ही क्या ? साँस का सरगम विसर्जन गीत का ही साज है , मृत्तिका के घेर में क्या बंध सका आकाश है , चाह पंख पसार जब पहुँची क्षितिज के छोर तक मिट गया आभाष कोई दूर है या पास है । बंध गयी जो चाह मरू का थूह ,कारावास है मुक्त…