हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन -विहंगावलोकन
हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन -विहंगावलोकन                     सामान्यत : " इतिहास " शब्द से राजनीतिक व सांस्क्रतिक इतिहास का ही बोध होता है ,किन्तु वास्तविकता यह है कि श्रष्टि की कोई भी वस्तु ऐसी नहीं है जिसका इतिहास से सम्बन्ध न हो । अत :  साहित्य भी इतिहास से असम्ब्द्ध  नहीं है ।साहित…
Yovan Paar Se
यौवन पार से --------------------- आज यौवन पार से विश्राम ने मुझको पुकारा ओ प्रमंजन ठहर सम्मुख खड़ा सीमा द्वार तेरा | तोड़ता चलता रहा तू है सभी युग  -मान्यतायें भ्रान्ति के कितनें घरौंदे तोड़कर तूने ढहाये रूढ़ि के अश्वत्थ भीमाकार अविचल वज्र टक्कर से हिला तूनें गिराये अगति की औंधी शिलायें क्षार कर दीं खण…
               काम से राम तक 
काम से राम तक                           अर्ध रात्रि का गहन अन्धकार | मेघाच्छादित गगन ,हल्की फुहारों की अविरल वृष्टि | एक दुमंजिले मकान की बाहरी दीवार से ऊपर चढ़ते किसी पुष्ट व्यक्ति की धुंधली झलक | एक उछाल के साथ छज्जा लांघकर अन्तर प्रविष्टि | छज्जे की ओर खुलते एक कक्ष  के काष्ठ द्व…
बोली शहादत की 
बोली शहादत की    कर बोली देना बन्द अगति के व्यापारी यह गीत बिकाऊ नहीं स्वेद का जाया है यह गीत समर्पित है खेतों खलिहानों को यह गीत धान की पौध- रोपने आया है यह गीत गरम लोहे पर सरगम बन गिरता यह गीत क्रान्ति- सिंहासन का द्रढ़ पाया है यह गीत तुम्हारी माया का मुहताज नहीं यह गीत श्रमिक के ओठों पर पर लहराये…
Vaas Na Suvaas
वास (न ) सुवास    जान सका यह  सत्य अभी तक के जीवन  में मर जाता है प्यार वासना मर- मर जीती अमर वासने अमिट तुम्हारी राम कहानी भू कुंठित लुंठित नृप योगी -ज्ञानी मानी कालचक्र सी प्रबल शताधिक रूपों वाली दंश मधुर मारक फिर भी तू मधु की प्याली  सर्वजयी तू कर्मचक्र की सजग विधात्री आदि शक्ति तू आदि मूल तू जी…
कुंम्भकरण
कुंम्भकरण क्या सचमुच चाह रहे साथी ? हर भेद -भाव हर ऊँच -नीच उठ जाय देश की धरती से सोनें की फसलें उमग उठें हर बंजर से हर परती से जो जाति- पांति शोषक -शोषित की भेद भरी दीवारें हैं भाई -भाई को मिटा रहीं जो जहर भरी फुंकारें हैं इन फुंकारों का मारक विष जिससे दूषित जल- वायु हुयी -मिट जाय देश की धरती से क…